राजा और काना घोड़ा की कहानी | King And One Eyed Horse Story In Hindi

मेरे प्यारे दोस्तों आप सभी का एक बार फिर से मेरे ब्लॉग MLM Success Guide पर एक बार फिर से बहुत बहुत स्वागत है। आज हम एक राजा और काना घोड़ा की कहानी (Raja Aur Kana Ghoda Ki Kahani) पढ़ेंगे …

हमारे इस ब्लॉग पर अब आप सभी को अच्छी-अच्छी मोटिवेशनल तथा शिक्षाप्रद कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी।

यदि आपको भी कहानियाँ पढ़ना पसंद हैं, तो आप इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।    

Raja Aur Kana Ghoda Ki Kahani

एक बार एक राजा के पास एक बहुत ही सुन्दर तथा हृष्ट-पुष्ट घोड़ी थी। राजा उस घोड़ी से बहुत प्यार करता था तथा वह उसका बहुत ख्याल रखता था। इसका एक कारण ये भी था कि कई बार युद्ध में घोड़ी नें राजा के प्राणों की रक्षा भी की थी। घोड़ी की इसी वफादारी नें ही राजा का दिल जीत लिया था।

घोड़ी कई सालों तक वफादारी के साथ राजा की सेवा करती रही, इसके बाद जब वह घोड़ी बूढ़ी हो गयी, तो उसके स्थान पर उसके बेटे ने अपनी माँ की जगह ले ली। घोड़ी की तरह ही उसका बेटा भी हृष्ट-पुष्ट था, किन्तु वह जन्म से ही एक आँख का काना था, जिस वजह से वह हमेशा ही परेशान रहा करता था।    

एक बार उसने अपनी माँ से पूछ ही लिया,  “कि माँ काना ही क्यों पैदा हुआ“ 

तब उसकी माँ ने बताया, “ एक बार की बात है! तू मेरे गर्भ में था तथा राजा मेरी सवारी कर रहा था, तभी अचानक मेरे पैर लड़-खड़ाने की वजह से राजा नें आवेश में आकर मुझे चाबुक से मार दिया था। मुझे लगता है कि इसी वजह से तू एक आँख का काना हो गया। 

इतना सुनते ही काने घोड़े के मन में राजा के प्रति बहुत ही ज्यादा गुस्सा भर उठा। उसने अपनी माँ से कहा, “माँ ! राजा ने मुझे जीवन भर के लिए काना बना दिया है, इसका बदला एक न एक दिन राजा से अवश्य ही लूंगा।”

घोड़ी नें अपने बेटे को बहुत समझाया कि वह राजा से प्रतिशोध लेने का भाव अपने मन से निकाल दे। अचानक से ही राजा को क्रोध आ गया, जिस वजह से राजा का खुद पर नियंत्रण नहीं रह गया। इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि वह हमसे प्रेम नहीं करता है। 

बेटा तू! अपने मन से राजा से बदला लेने का विचार निकाल दे।  

काने घोड़े की माँ के बार-बार समझाने के बाद भी उसका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा वह राजा से प्रतिशोध लेने के लिए मौके तलाशने लगा। एक दिन काने घोड़े को राजा से प्रतिशोध लेने का मौका मिल ही गया। 

एक बार राजा युद्ध के मैदान में काने घोड़े पर सवार था तथा उसके पड़ोसी राज्य के बीच में घमासान युद्ध छिड़ा हुआ था। युद्ध के दौरान तलवारबाजी करते समय अचानक राजा उस काने घोड़े के नीचे गिर गया तथा मौत उसके करीब थी। काना घोड़ा उसे वहीं छोड़कर भाग सकता था, किन्तु उसनें ऐसा नहीं किया। उसने बड़ी ही फुर्ती से राजा को अपनी पीठ पर बैठाकर उसके प्राण बचा लिए

ऐसा होता देख काना घोड़ा बहुत ही चकित था कि उसनें भला ऐसा क्यों किया। जिसकी वजह से वह जीवन भर काना रहेगा, उसके प्रति उसनें वफादारी क्यों दिखाई ? आखिर उसनें राजा से बदला क्यों नहीं लिया? 

वापस आकर काने घोड़े नें अपनी माँ को सारी बात बताई, तो उसकी माँ हँसते हुए बोली, “आखिर तू बेटा किसका है? मेरा ! तू तो हमेशा से ही मेरी छत्रछाया में ही पला बढ़ा है तथा मैंने जो संस्कार तुम्हें दिया है, वो तुम्हारे रगरग में बसा हुआ है। तू कभी भी उन संस्कारों के विरुद्ध जा ही नहीं सकता है। वफादारी से तेरे खून में ही है! तू हमेशा ही वफादार रहेगा, बेटा!”  

तो बताओ बच्चों आज हम सभी ने इस राजा और काने घोड़े की कहानी (King And One Eyed Horse Story In Hindi) से क्या सीखा? 

दोस्तों, आज हम सभी नें इस कहानी से सीखा कि हमारे संस्कारों का हमारे आचरण पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जो भी संस्कार अपने बच्चों को देते हैं, वे संस्कार उनके अवचेतन मन पर गहरा प्रभाव डालते हैं तथा वे बच्चे कभी भी अपने संस्कारों के विपरीत नहीं जा सकते हैं।

संस्कारों का सबसे बड़ा आधार आपका परिवार ही होता है, जहां से ही बच्चों में संस्कारों की नींव पड़ती है। अतः सभी माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि अपने बच्चों को हमेशा ही अच्छे संस्कारों से अवगत कराते रहें।

निष्कर्ष: दोस्तों! मैं आशा करता हूँ कि आप सभी को यह राजा और काने घोड़े की कहानी पसंद आयी होगी। आप सभी को यह कहानी कैसी लगी? आप हमें कमेंट करके अपनी राय जरूर दें।

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